प्राचीन देवकली मंदिर का संक्षित इतिहास
औरैया जिले में यमुना तट के समीप स्थिति देवकली शिव मंदिर जनपद की प्राचीन धरोहर व् आस्था का प्रतीक है| सावन माह में यहाँ आसपास के कई जनपदों के शिवभक्त जलाभिषेक करने पहुचते है| शिवरात्री पर्व में भक्तो द्वारा शिव बारात के साथ जलाभिषेक किया जाता है| मंदिर के गर्भगृह में विद्धमान शिवलिंग की स्थापना कन्नौज राज्य के प्रतिहार वंश के राजा द्वारा 9वी शताब्दी में की गयी थी| महमूद गजनवी द्वारा 1019 ई| में इस धार्मिक स्थल को नष्ट करने का प्रयास किया गया, परन्तु स्थानीय लोगो द्वारा पुनः यहाँ शिवलिंग स्थापित कर दी गयी| कन्नौज राज्य के गहडवाल वंश के राजा चंद्रदेव में 1095 इश्वी में इस स्थान का मरम्मत कार्य करवाया| तब मंदिर गर्भगृह तक सीमित था| राजा चन्द्रदेव ने कालान्तर में मंदिर के समीप एक सैन्य छावनी विकसित करवाई, जिसके अवशेष मंदिर के आसपास अब भी पाए जाए है| 1125 इश्वी में कन्नौज नरेश जय चन्द्र ने अपनी मुह बोली बहन देवकली का विवाह जालौन के डाहर स्टेट के राजा विशेषदेव से करवाकर इस मंदिर क्षेत्र समेत 145 गाँव स्त्री धन के रूप में दिए| तदोपरांत शिव मंदिर के समीप स्थिति गाँव का नामकरण देवकला के नाम पर कर दिया गया और मंदिर देवकली धाम के नाम से विख्यात हुआ| राजा जयचंद्र द्वारा यमुना तट पर विश्राम हेतु विश्राम घाट का निर्माण करवाया गया| कालांतर में मुहम्मद गौरी सहित कई विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा मंदिर क्षेत्र को नुक्सान पहुचाया गया| 1772 ई| में मराठा छत्रप सदाजी राव भाऊ द्वारा उत्कृष्ट कलाक्रतियो समेत मराठा शैली में मंदिर परिसर का पुनः निर्माण करवाया गया तथा मंदिर का उपयोग सैन्य छावनी के रूप में भी हुआ| देवकली मंदिर क्षेत्र में कुल 51 कुएं थे, जिनमे कुछ आज भी विद्यमान है| अधिक जाने
दर्शन
लाइव दर्शन सुविधा उपलब्ध नहीं है. महादेव के दर्शन के लिए आपको किसी भी प्रकार का कोई रजिसट्रेशन की आवश्यकता नहीं है आप कभी मंदिर में आ सकते है. यहाँ दर्शन के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है.
पूजा बुकिंग
किसी भी पारिवारिक पूजा या अन्य पूजा मंदिर में करवाने के लिए आप ऑनलाइन बुक कर सकते है. आप हवन, जन्मदिन, रुद्राभिषेक, मुंडन संस्कार गायो की सेवा आदि किसी भी प्रकार की पूजा करवा सकते है.
दान कर्म
अपनी इच्दाछानुसार किसी भी प्रकार का दान या मंदिर सहयोग के लिए राशि दे सकते है. ऑनलाइन अभी मंदिर परिसर का अकाउंट नहीं है. इसलिए जो भी दान करे मंदिर में पहुचकर करे और उसकी रशीद अवश्य ले.
सनातन पूजा
शिवशक्ति पूजा
लक्ष्मी पूजा
सरस्वती पूजा
मंदिर की तस्वीरें
बाबा के श्रृंगार की कुछ झलक
ॐ ध्वनि उच्चारण ॐ
देवकली मंदिर
मंदिर सेवा
आने वाले कार्यक्रम
22 जनवरी
राम जन्मभूमि उत्सव
14
फरबरी
बसंत पंचमी
8
मार्च
शिवरात्रि
24
मार्च
होली
ज्योतिर्लिंग धाम के लाइव दर्शन
महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर से लाइव दर्शन
बाबा सोमनाथ मंदिर से लाइव दर्शन
शिव पुराण महिमा
शिव पुराण सबसे लोकप्रिय
शिव पुराण सभी पुराणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुराणों में से एक है। भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है। इसमें शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। शिव पुराण में शिव को पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर संयोजन है। इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं।
‘शिव पुराण’ का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्रायः सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु ‘शिव पुराण’ में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है। इस पुराण में २४,००० श्लोक है तथा इसके क्रमश ६ खण्ड है|
विद्येश्वर संहिता
कोटिरुद्र संहिता
वायु संहिता
रुद्र संहिता
कैलास संहिता
उमा सहिता
शिवजी के 5 चमत्कारी मंत्र
सनातक धर्म -
सनातन धर्म अपने हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से भी जाना जाता है| वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिए सनातन धर्म नाम मिलता है। ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे भारतीय उपमहादीप तक व्याप्त रहा है और यह एक समय पर विश्व व्याप्त था परंतु विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के उपरांत भी विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक जनसंख्या इसी धर्म में आस्था रखती है। प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव, कोटी वैष्णव, शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे। गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव, कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है। कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की। जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया।
मंगला काली माता (प्राचीन मंदिर)
जय माता दी
मंगला काली मंदिर
शहर से पांच किमी दूर बीहड़ स्थित मां मंगला काली मंदिर सिद्ध शक्ति पीठ में शुमार है। यहां पर नवरात्र के अलावा भी श्रद्धालु मां के दरबार में दर्शन व पूजा आराधना करने आते हैं। दरबार में लगाई गई अरदास पूरी होती है। नवरात्र महापर्व पर झंडा व जवारे चढ़ाने गैर जनपदों के भक्त आते हैं।
भक्तों की भीड़
चैत्र नवरात्रि के समापन के दौरान यहाँ हवन, छोटी कन्या भोज व् पूजा अर्चना करने के लिए दूर-दूर से भक्तगढ़ आते है.
कन्या भोज
नवरात्रि में अष्टमी और नवमी का विशेष महत्व होता है. इस दिन लोग अपने घरों और मंदिरों में हवन-पूजन करते हैं. इस दिन माता महागौरी और सिद्धीदात्री की अराधना करनी चाहिए. कन्या पूजन के लिए अपने घर में 2 से 10 साल तक की कन्याओं को भोजन करने के लिए भी बुलाना चाहिए.
पूरी होती है हर मन्नत
औरैया जिले में बीहड़ में स्थित मंगला काली मंदिर सिद्धपीठ देवी माता का स्थान है. नवरात्रि की नवमी के दिन इस मंदिर में हजारों की तादाद में दूर-दूर से भक्त आते हैं.
मन की शांति
मां के दरबार में पहुंचकर आत्मिक शांति का अनुभव होता है। मन में उत्पन्न होने वाले विकारों से मुक्ति मिलती है। मां हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करती हैं।
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आप देश या विदेश से मंदिर दर्शन के लिये आना चाहते है, तो आपको सबसे पहले मंदिर के नजदीकी एअरपोर्ट आगरा, लखनऊ व् कानपुर आ सकते है. कानपुर एअरपोर्ट मंदिर परिसर से सबसे ज्यादा करीब है. सुविधा के लिए आप लखनऊ एअरपोर्ट को प्राथमिकता दे, क्योंकि लखनऊ एअरपोर्ट पर ज्यादा हवाई सेवाए उपलब्ध है. लखनऊ एअरपोर्ट पहुचने के बाद आप वहां से औरैया जिला के लिए बस या कैब ले संकते है. अगर आप बस से आते है, तो बस आपको औरैया बस स्टैंड पर उतारेगी वहां से आप देवकली मंदिर परिसर के लिए ऑटो बुक कर सकते है.
देवकली मंदिर दर्शन के लिए आपको सबसे पहले मंदिर के नजदीकी फफूंद रेलवे स्टेशन आना होगा. फफूंद रेलवे स्पटेशन पहुचने के बाद आप वहां से औरैया के लिए बस या कैब ले संकते है. अगर आप बस से आते है, तो बस आपको औरैया बस स्टैंड पर उतारेगी वहां से आप देवकली मंदिर परिसर के लिए ऑटो बुक कर सकते है. यदि आप कैब से आते है, तो आप सीधे मंदिर परिसर जा सकते है.
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